देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में धनाढ्य लोगों का रिहायशी इलाका जुहू में अर्पण कैफे को अभी खुले हुए तीन महीने भी नहीं हुए होंगे, लेकिन इसकी चर्चा चारों तरफ होने लगी है। अनेक लोग इस कैफे के नियमित ग्राहक बन गए हैं।
इस कैफे की खासियत यह है कि इसमें काम करने वाले ज्यादातर लोग किसी न किसी शारीरिक अशक्तता से पीड़ित हैं, मगर उनके काम में उनकी शारीरिक अशक्तता आड़े नहीं आ रही है।
कैफे में रोजगार मिलने से वह आर्थिक रूप से सशक्त तो हुए ही हैं, बल्कि कैफे की कामयाबी के श्रेय का भी वे हकदार हैं।
कैफे में कार्यरत 19 कर्मचारी शारीरिक रूप से अशक्त हैं, लेकिन वे सप्ताह में छह दिन 30 घंटे काम करते हैं।
कैफे की संस्थापक व स्वामी डॉ. सुषमा नागरकर ने आईएएनएस को बताया, “यह सपने जैसा था। इसकी योजना बनाने में करीब एक साल का वक्त लग गया, लेकिन उचित जगह मिलने और क्राउडफंडिंग से इसके लिए धन जुटाने के बाद हमने आखिरकार दो अगस्त को सपने को हकीकत में बदला। मेरे पास 19 कर्मचारी हैं जिनमें अधिकांश पूर्णकालिक हैं। इन कर्मचारियों में मेरी बड़ी बिटिया भी शामिल है। सभी कर्मचारी किसी न किसी शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित हैं।”
मनोवैज्ञानिक नागरकर दो बेटियों की मां हैं। उनकी बेटी आरती आटिज्म रोग से पीड़ित है। उनकी दूसरी बेटी का नाम दिव्या है।
नागरकर जब विदेश में रहती थी तभी से ही वह कुछ विशेष करना चाहती थीं, जिससे अशक्तता के पीड़ित लोगों का सशक्तीकरण हो।
शुरुआत में करीब डेढ़ साल पहले उन्होंने टिफिन सेवा शुरू की थी, जिसमें वह काफी सफल रहीं।
यह कार्य उन्होंने अपने एक दर्जन कर्मचारियों को लेकर शुरू किया था। सभी कर्मचारी आटिज्म और डाउन सिंड्रोम जैसी मनोव्यथा से पीड़ित हैं। इन रोगों से पीड़ित लोग बौद्धिक रूप से दुर्बल होते हैं और जिसका कोई इलाज नहीं है।
सांता क्रूज वेस्ट स्थित एसएनडीटी वुमंस यूनिवर्सिटी के जुहू परिसर के सामने स्थित अर्पण कैफे को खासतौर से उन्हीं लोगों के लिए डिजाइन किया गया है।
नागरकर ने कहा, “सीमित लेकिन विशिष्ट व्यंजन-सूची के अलावा इसमें कर्मचारियों के लिए काफी जगह है, जहां वे आराम से चल-फिर सकते हैं। उनकी सुरक्षा के लिए सब कुछ बिजली से चालित है। वे आराम से पांच घंटे काम कर सकते हैं। साथ ही, उद्योग के मानक के अनुरूप उनको पारिश्रमिक मिलता है।”
नागरकर ने बताया कि इन कर्मचारियों की उम्र 23-50 साल के बीच है। वे नाममात्र के साक्षर हैं, लेकिन पूरे समर्पण के साथ सारा कुछ संभालने में सक्षम बन गए हैं।
नागरकर ने यश चैरिटेबल ट्रस्ट (वाईसीटी) के तत्वावधान में भोजनालय खोला। वह इस वाईसीटी की न्यासी हैं और इसके तहत बहुआयामी सामाजिक कार्य करती हैं।
मुस्कराते हुए उन्होंने बताया, “मैं 15 साल अमेरिका में बिताने के बाद वापस भारत आई हूं। यहां मैंने विकासात्मक अशक्ततता से पीड़ित लोगों को सामाजिक और राष्ट्रीय मुख्यधारा में लागने के लिए 2014 में वाईसीटी की शुरुआत की।”
नागरकर को लगता है कि अशक्त लोगों में काफी सामथ्र्य होता है लेकिन उनको अवसर नहीं मिल पाता है। इसलिए उन्होंने छोटे स्तर पर उनको मदद करने के लिए टिफिन सेवा और अर्पण कैफे की शुरुआत की, जिससे उनको सक्षम बनाया जा सके और वे अपने और अपने परिवारों की आजीविका चलाने में सहयोग कर सकें।
आरंभ में कर्मचारी और संरक्षकों में संवादहीनता थी, लेकिन बाद में उनके बीच बेहतर समझदारी बनी और सब कुछ सुचारु चलने लगा। साथ ही, ग्राहकों की ओर से भी इस पहल को सराहना मिलने लगी।
अर्पण कैफे सुबह आठ बजे से लेकर अगले 12 घंटे तक खुला रहता है। कैफे में साधारण लेकिन खास तौर से तैयार किया गया व्यंजन मिलता है। यहां बर्गर, पिज्जा, गर्म व शीतल पेय पदार्थ जैसे 30 व्यंजन मिलते हैं, जो शारीरिक रूप से अशक्त कर्मचारी आसानी तैयार कर लेते हैं।
कैफे के व्यंजन के शौकीन मिनी पी. मेनन ने कहा, “नाश्ते के लिए यहां आने पर जब मैंने एक कर्मचारी को ऑर्डर लेकर पूरी सक्षमता से फटाफट जलपान परोसते देखा तो हैरान रह गया। बाद में मुझे मालूम हुआ कि सभी कर्मचारी शारीरिक रूप से अशक्त हैं।”
नागरकर ने लोगों से ऐसे कार्यो के लिए आगे आने की अपील की जिनसे विकासात्मक अशक्तता से पीड़ित लोगों को लाभ मिल सके और वे आत्मनिर्भर बनकर सम्मान की जिंदगी जी सकें।
उन्होंने कहा, “मैंने ऐसा ही कार्य अमेरिका में करने को सोचा था ताकि सरकार से पर्याप्त धन प्राप्त हो। लेकिन यहां आने का मैंने फैसला लिया क्योंकि भारत में अधिक जरूरत है। हालांकि यह शुरुआत है, लेकिन हम परिणामों से संतुष्ट हैं और आगे इसका विस्तार करने के बारे में सोच सकते हैं।”