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डाकिया डाक नहीं लाता, चिट्ठियां कहती हैं ‘अच्छे थे वही लोग पुराने ख्याल के’

डिजिटल युग के लोगों की जीवनशैली डिजिटल है। किसी से बात करने के लिए फौरन व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ईमेल जैसे प्लेटफॉर्म का सहारा लेते हैं। इसमें वो दौर पीछे छूट गया है, जहां पर एक-दूसरे से संवाद स्थापित करने के लिए पत्र का सहारा लिया जाता था।

प्रत्येक वर्ष 1 सितंबर को ‘विश्व पत्र लेखन दिवस’ मनाया जाता है। इसके पीछे का मुख्य उद्देश्य आज की डिजिटल युग में ‘टेक्स्ट और ईमेल’ के बजाय ‘कागज और कलम’ से पत्राचार करना है।

इस दिन को मनाने के पीछे की वजह इन लाइनों से समझ सकते हैं। पहले इन लाइनों को पढ़ें, “मोबाइलों के दौर के आशिक को क्या पता, रखते थे कैसे खत में कलेजा निकाल के, ये कहके नई रोशनी रोएगी एक दिन, अच्छे थे वही लोग पुराने ख्याल के।”

दरअसल, डिजिटल युग के लोगों की जीवनशैली डिजिटल है। किसी से बात करने के लिए फौरन व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ईमेल जैसे प्लेटफॉर्म का सहारा लेते हैं। इसमें वो दौर पीछे छूट गया है, जहां पर एक-दूसरे से संवाद स्थापित करने के लिए पत्र का सहारा लिया जाता था।

दूरदराज के लोगों से संचार करने के लिए पत्र एक विश्वसनीय और बेहतरीन माध्यम के रूप में सालों तक दुनिया पर राज करता रहा। वर्तमान समय में खत्म हो रहे इस परंपरागत प्रचलन को याद रखने के लिए प्रत्येक वर्ष 1 सितंबर को ‘विश्व पत्र लेखन दिवस’ मनाया जाता है।

‘विश्व पत्र लेखन दिवस’ की शुरुआत साल 2014 में हुई थी, जब ऑस्ट्रेलियाई लेखक, कलाकार और फोटोग्राफर रिचर्ड सिंपकिन ने इसकी अलख जगाई। 1990 के दौरान वो अक्सर उन तमाम लोगों को पत्र लिखा करते थे, जिनको वो ऑस्ट्रेलियाई किंवदंती मानते थे, इसका उनको जवाब भी मिलता था, जिससे वो बहुत उत्साहित महसूस करते थे। अपनी पुस्तक ‘ऑस्ट्रेलियन लेजेंड्स’ में रिचर्ड ने इसका अनुभव भी साझा किया है।

कलम और कागज द्वारा हाथों से लिखे पत्रों का सम्मान करने के लिए रिचर्ड सिंपकिन ने एक विशेष दिन बनाया और यहीं से ‘विश्व पत्र लेखन दिवस’ की शुरुआत हुई।

अगर आज के आधुनिक समय में पत्र लेखन की खूबियों की बात करें तो ये लोगों को काफी सोच-समझकर शिष्टाचार सवाल और जवाब करने का मौका देता है। बिना संदेह डिजिटल युग में ऐसे तमाम प्लेटफॉर्म हैं, जो चंद सेकेंडों में लोगों से संवाद स्थापित कर सकते हैं और किसी खास मुद्दे पर चल रही संवाद का तुरंत निष्कर्ष निकाल सकते हैं, जिसके अपने फायदे हैं, लेकिन कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं।

लोगों पर तुरंत जवाब देने का दबाव होता है, सोचने-समझने का ज्यादा समय नहीं मिलता है और यही कारण है कि कई बार आप जल्दबाजी में कुछ ऐसा लिख देते हैं, जो भावनात्मक रिश्ते के बुनियाद को जड़ से हिलाकर रख देता है। शायद इसलिए ही कहा जाता है कि टेक्स्ट के कोई इमोशन नहीं होते।

दूसरी तरफ पत्र के माध्यम से संवाद स्थापित करने में आपको जवाब देने की इतनी जल्दबाजी नहीं होती है। लोगों को अपनी भावनाओं को पेपर पर लिखने का पर्याप्त समय मिलता है। अपनी बातें ज्यादा सटीकता से रखी जा सकती है। इस अनुभव को फिर से जीने के लिए लोगों को इंटरनेट की दुनिया से बाहर निकलकर टेक्स्ट और ई-मेल के बजाय कागज और कलम का सहारा लेना पड़ेगा।

‘विश्व पत्र लेखन दिवस’ एक अवसर है, जिससे आप उन लोगों से दोबारा जुड़ सकते हैं, जो आज की इस भागती-दौड़ती दुनिया में वर्चुअल रूप से तो उपलब्ध हैं, सोशल रूप से नहीं।

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