यूं तो अदालतों और तिहाड़ जेल प्रशासन ने फांसी पर लटकाए जाने से पूर्व कानूनन जो भी मुलाकात के मौके थे, निर्भया के मुजरिमों को मुहैया कराया था। कुछ मुजरिमों ने इस मौकों का लाभ भी लिया, लेकिन कुछ ने ऐंठ के चलते उन पलों का अहसास करने से इंकार कर दिया।
गुरुवार शाम मुजरिम अक्षय कुमार सिंह से उसके परिजन जेल में मिलने पहुंचे। यह उनकी आखिरी मुलाकात थी। उस मुलाकात के बाद परिजनों को अक्षय कुमार सिंह का शव ही शुक्रवार को सौंपा गया।
मुलाकातों के इन दौर में सबसे महत्वपूर्ण मुलाकात थी तिहाड़ की चारों काल-कोठरियों में कैद मुजरिमों की शुक्रवार तड़के करीब पांच बजे की। यह मुलाकात उनकी इस दुनिया में किसी इंसान से आखिरी मुलाकात थी। तिहाड़ जेल मुख्यालय के एक उच्चाधिकारी ने भी इस मुलाकात की पुष्टि आईएएनएस से शुक्रवार को की।
तिहाड़ जेल के इसी आला अफसर ने नाम उजागर न करने की शर्त पर इस आखिरी मुलाकात के बारे में बताया, “दरअसल गुरुवार रात से ही चारों मुजरिमों को उनकी सेल में कड़ी चौकसी में रखा गया था। चारों मुजरिमों में से कुछ ने परिवार वालों को बुलाकर आखिरी मुलाकात कर भी ली थी। इनमें से कुछ मुजरिम ऐसे भी थे, जिन्होंने परिवार वालों से मुलाकात नहीं की। या फिर उनकी मुलाकात नहीं हो सकी।”
शुक्रवार तड़के करीब पांच बजे सफेद रंग की एक कार तिहाड़ जेल मुख्यालय वाले गुप्त रास्ते से जेल नंबर तीन के पास पहुंची, क्योंकि जेल नंबर एक को जाने वाले मुख्य मार्ग पर मौजूद द्वार पर मीडिया का जमघट था। उस कार में कौन था? यह बात जेल के महानिदेशक संदीप गोयल, अपर महानिरीक्षक राज कुमार, जेल सुपरिंटेंडेंट एस.सुनील के सिवाए किसी को नहीं पता थी।
जेल नंबर तीन के मुख्य द्वार पर कार के पहुंचते ही उसमें से एक शख्स तेज कदमों के साथ उतर कर अंदर चला गया। उसे रिसीव करने जेल नंबर तीन के दरवाजे पर जेल सुपरिटेंडेंट सहित कुछ डिप्टी सुपरिंटेंडेंट पहले से ही मौजूद थे। उस अजनबी अफसर को सीधा निर्भया के मुजरिम विनय, पवन, मुकेश और अक्षय की काल-कोठरियों के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया गया।
तिहाड़ जेल सूत्रों के मुताबिक, “मुजरिमों की काल कोठरियों के सामने उस अफसर के पहुंचते ही चारों मुजरिमों को बारी-बारी से बाहर ले आया गया। अब तक चारों मुजरिमों के चेहरे खुले हुए थे। अजनबी ने चारों मुजरिमों के बारी-बारी से नाम पते पूछे और अफसर उन चारों की काल-कोठरियों से आगे बढ़ गया। बिना कुछ बोले और किसी से कोई बात किए।”
तिहाड़ जेल नंबर तीन के सूत्रों ने आईएएनएस को बताया, “असल में वह कोई और नहीं, पश्चिमी जिले के आईएएस और उपायुक्त (डिप्टी कमिश्नर) थे। जिनके द्वारा मुजरिमों की आखिरी वक्त (फांसी के फंदे पर टांगने को ले जाए जाने से ऐन पहले) कानूनन पहचान किया जाना अनिवार्य था। डिप्टी कमिश्नर से मुलाकात के तुरंत बाद ही चारों मुजिरमों को अलग-अलग (आगे-पीछे) करके उनके मुंह को कपड़े से ढंक दिया गया। और वहीं से उन्हें फांसी के तख्ते की ओर कड़ी सुरक्षा में ले जाने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने अपने कब्जे में ले लिया।”