मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने नारा दिया था- ‘हमारा नेता तो शिवराज, माफ करो महाराज’। चुनाव के नतीजे आए, कांग्रेस को सत्ता की बागडोर मिली, मगर लगता है कि नारा भाजपा ने दिया था और उस पर अमल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने किया। कांग्रेस ने ‘माफ करो महाराज’ कहते हुए प्रदेश की कमान कमलनाथ को सौंपने का ऐलान भी कर दिया।
राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की जनता के बीच एक नारा दिया और वह खूाब चर्चाओं में रहा। भाजपा के हर दृश्य-श्रव्य (ऑडियो-विजुअल) और मुद्रण (प्रिंट) माध्यमों में प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों में सबसे ज्यादा हमले ज्योतिरादित्य सिंधिया पर किया गया। भाजपा ने सिंधिया को महाराज बताकर जनता के बीच शिवराज की छवि बनाने की कोशिश की, मगर सिंधिया के क्षेत्र के 34 विधानसभा क्षेत्रों में से 27 पर कांग्रेस को जीत मिली।
कांग्रेस के कुल 114 सदस्य निर्वाचित होकर आए हैं। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी के दो, समाजवादी पार्टी के एक और चार निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिलने के बाद कांग्रेस के पक्ष में कुल 121 सदस्य हो गए हैं।
मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार थे- कमलनाथ और ज्येातिरादित्य सिंधिया। पार्टी हाईकमान ने राज्य का मुख्यमंत्री कमलनाथ को बनाने का ऐलान किया। उसके बाद से कांग्रेस के भीतर ही सवाल उठने लगे।
कांग्रेस विधायक इमरती देवी का कहना है कि यह चुनाव सिंधिया को आगे रखकर लड़ा गया। भाजपा और उसके नेताओं के निशाने पर सिंधिया थे, पार्टी ने वोट भी उनको मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगे थे। सिंधिया मुख्यमंत्री नहीं बने तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो लोकसभा चुनाव में कैसे वोट मांगने जाएंगे, मतदाता तो क्षेत्र में ही नहीं घुसने देंगे।
वरिष्ठ पत्रकार भारत शर्मा का कहना है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुत करीब से सफलता मिली है, इस स्थिति में कांग्रेस ने अनुभव को महत्व दिया है। अगर कांग्रेस को 140 से ज्यादा सीटें मिलतीं तो कांग्रेस हाईकमान सिंधिया को कमान सौंप सकता था।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने विधानसभा के अंदर और बाहर होने वाले हमलों से निपटने के लिए अनुभवी को मैदान में उतारा है, आगे लोकसभा चुनाव भी है और कांग्रेस किसी तरह का जोखिम लेना नहीं चाहेगी।
शर्मा ने कहा कि सिंधिया को उपमुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष बनाने में कांग्रेस को किसी तरह की आपत्ति भी नहीं होना चाहिए। सिंधिया ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से आते हैं और अगर उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाती है तो इस क्षेत्र को भी प्रतिनिधित्व मिल जाएगा। यह सब हाईकमान को तय करना है।
कांग्रेस ने विधायक दल का नेता चुन लिया है, शपथ ग्रहण समारोह 17 दिसंबर को होने वाला है। इससे पहले कांग्रेस के भीतर ही द्वंद्व छिड़ गया है। कांग्रेस नेता समझ नहीं पा रहे हैं कि सिंधिया को जिम्मेदारी देने से कतराया क्यों जा रहा है।