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सोशल डिस्टेंसिंग का महत्व समझा रहे हैं कोरोनावॉरियर्स

कोरोनावायरस को हराने के लिए रणनीति बनाने और फैसले लेने की जिम्मेदारी बेशक सरकार की है। इसे लागू करने के लिए पुलिस और अन्य साधनों की मदद ली जा सकती है लेकिन जब तक इसमें स्थानीय लोगों की सहभागिता ना हो तब तक इसे पूरी तरह लागू कर पाना मुश्किल है क्योंकि पुलिस और सुरक्षा बलों की पहुंच किसी भी शहर या कस्बे के हर एक व्यक्ति तक नहीं हो सकती।

सरकार ने साफ कर दिया है कि 21 दिनों तक लोग एक दूसरे से दूर रहते हुए कोरोना के खिलाफ महाभारत में उसका साथ देंगे। शुरूआत में दिक्कत हुए क्योंकि लोग इसके महत्व को समझ नहीं रहे थे लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ आने लगा। इसके बावजूद पूरे देश में एक एसा तबका है जो बेमतलब सड़कों पर तफरीह करता फिर रहा है। उन्हें सजा भी मिल रही है। मामले भी दर्ज हो रहे हैं। मामला दर्ज करके इन्हें जेल में डालना समाधान नहीं क्योंकि हमारे जेल पहले ही ओवरलोडेड हैं और वहां भी कोरोना के फैलने का खतरा है।

ऐसे में बाहरी दिल्ली की कुछ कालोनियों में स्थानीय लोगों ने आपसी सूझबूझ का परिचय देते हुए सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर लोगों को जागरूक करने का फैसला किया है। वे सुबह और शाम को मास्क लगाए अपनी कालोनी और उसके आसपास के क्षेत्रों में लोगों को जागरूक कर रहे है तथा शाम को सोशल डिस्टेंसिंग के लिए खतरा बन रहे फेरीवालों को भी समझा बुझा रहे हैं।

पश्चिमी दिल्ली के विकासपुरी विधानसभा क्षेत्र की कई कालोनियों में स्थानीय लोगों ने तीन-तीन, चार-चार लोगों का समूह बना लिया है, जो मास्क लगाए एक निश्चित दूरी बनाए रखते हुए लोगों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं। ये लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रही छोटे परचून की दुकानों के मालिकों को भी समझा रहे हैं और साथ ही कोरोना के दुष्प्रभावों को लेकर आगाह भी कर रहे हैं।

ऐसे समूहों में ज्यादातर वे सरकारी कर्मचारी शामिल हैं, जो अभी लॉकडाउन की वजह से ड्यूटी नहीं जा रहे हैं। इनमें कई रिटायर्ड पुलिसवाले भी हैं, जो परदे के पीछे रहते हुए अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं। सरकार ने इन्हें भी कोरोनावॉरियर्स नाम दे सकती है। स्थानीय स्तर पर इन समूहों के लोग कालोनियों में बना किसी कारण तफरीह करने वाले लोगों से पहचान पत्र मांग रहे हैं और जो लोग स्थानीय नहीं होते हैं, उन्हें यथाशीघ्र घर लौटने के कहा जाता है।

रामवीर सिंह 2015 में दिल्ली पुलिस से सहायक निरीक्षक पद से रिटायर हुए थे। वह कुंवर सिंह नगर में रहते हैं और इस सामाजिक पहल के अगुवा बने हुए हैं। रामवीर सिंह ने आईएएनएस से कहा, ” कोरोना को हराना हमारी जिम्मेदारी है। सरकार इस दिशा में भरसक प्रयास कर रही है और अगर हमने उसका साथ नहीं दिया तो हम ही मुश्किल में घिर जाएंगे। पुलिस कहां तक और किस-किस को रोकेगी। हम में से अधिकांश लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब समझ आ गया है लेकिन अभी भी कई बेकाबू लोग हैं जो इसे लेकर बेपरवाह हैं। ये लोग हमारे लिए खतरा हो सकते हैँ। इसी को देखते हुए हमने यह काम शुरू किया है।”

छोटी और अनाधिकृत कालोनियों की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वे अनाप-शनाप तरीके से बसी हुई हैं। घर-घर में परचून की दुकाने हैं और स्थानीय लोगों की जरूरतें इन्हीं से पूरी होती है। इन कालोनियों में आमतौर पर मजदूर और अशिक्षित वर्ग के लोग रहते हैं, जो सोशल डिस्टेंसिंग जैसी महत्वपूर्ण चीज के महत्व को नहीं समझ रहे हैं। साथ ही किशोरावस्था में कदम रखने वाले बेपरवाही से बाईक या स्कूटी लिए तफरीह करते हैं और दूसरों के लिए खतरा बनते हैं।

आईएएनएस ने इसी तरह की एक घनी बस्ती रिशाल गार्डन का भी दौरा किया। वहां भी शाम के वक्त लोग एक दूसरे को जागरूक करते नजर आए। इस काम में पुलिस उनकी भरपूर मदद कर रही है क्योंकि उनकी इस पहल पर कुछ युवा सवाल उठाते हैं तो एसे लोगों को पुलिस सम्भाल लेती है।

इस कालोनी में इस पहल के अगुवा करतार सिंह हैं, जो मोटरसाइकिल रिपेयर वर्कशाप चलाते हैं। उनका काम बंद है लेकिन इससे चिंतित हुए बगैर वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में लगे हुए हैं। सिंह ने आईएएनएस से कहा,”यह मुश्किल समय है। हमें अपने लिए कुछ करना होगा। पुलिस और प्रशासन अपने स्तर पर काफी कुछ कर रहे हैं। उन्हें हमारा साथ चाहिए। समाज में एसे ही बदलाव आएगा। हमें समझना होगा कि हमारी कालोनी में अगर एक भी पाजीटिव केस निकल आया तो पूरी कालोनी सील हो जाएगी और तब हमारी जिंदगी और भी मुश्किल हो जाएगी।”

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