सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लोकसभा सदस्य मनोज तिवारी के खिलाफ अवमानना कार्यवाही पर मंगलवार को अपना आदेश सुरक्षित रखा। तिवारी के खिलाफ एक परिसर की सील तोड़ने के मामले में सुनवाई चल रही है। अदालत ने उनसे पूछा कि वह कानून को अपने हाथ में कैसे ले सकते हैं।
जब तिवारी ने कहा कि परिसर को गैरकानूनी रूप से सील किया गया था तो न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि आरोपी के पास अन्य उपाय भी उपलब्ध थे।
तिवारी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने अदालत को बताया कि तिवारी पर अवमानना का मामला नहीं बनता क्योंकि जिस परिसर की सील तोड़ने पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उसे अदालत या इसके द्वारा नियुक्त निगरानी समिति के दिशा-निर्देशों पर सील नहीं किया गया था।
तिवारी ने कहा कि उन्होंने इसलिए सील तोड़ी क्योंकि वहां 1,500 से ज्यादा लोगों की भीड़ अंदोलन कर रही थी। इस पर न्यायमूर्ति नजीर ने कहा, “क्या हम भीड़ द्वारा शासित हैं? ठीक है, मान लेते हैं कि वह गलत तरीके से सील था तो बतौर निर्वाचित प्रतिनिधि आपकी क्या जिम्मेदारी है?”
अदालत ने तिवारी से कहा कि अगर परिसर गैरकानूनी रूप से सील था तो उन्होंने अधिकारियों से संपर्क क्यों नहीं किया।
तिवारी ने अदालत द्वारा नियुक्त निगरानी समिति पर अपने सीलिंग अभियान से ‘लोगों में दहशत फैलाने के लिए’ निशाना साधा।
उन्होंने कहा कि कानून में बिना नोटिस दिए सीलिंग करने का कोई प्रावधान नहीं है।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कार्रवाई की सूचना दिए बिना केवल पुलिस बल के साथ होने से अधिकारियों को किसी परिसर को सील करने का अधिकार नहीं मिल जाता है ।
निगरानी समिति की ओर से पेश वकील ए.डी.एन. राव ने अदालत से कहा कि तिवारी पर जुर्माना लगाया जाए जो उनकी जेब पर भारी पड़े। उन्हें जेल नहीं भेजा जाए क्योंकि इसका इस्तेमाल वह अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर सकते हैं।
तिवारी के बयान का जवाब देते हुए राव ने कहा कि परिसर के मालिक पहले ही 39 हजार का जुर्माना भर चुके हैं और उन्होंने इस कार्रवाई की कोई शिकायत भी नहीं की थी। इसके बावजूद, मामले से किसी तरह का संबंध नहीं रखने वाला एक तीसरा व्यक्ति आता है और सील तोड़ देता है।