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जहां अंतिम जीवन आनंद में व्यतीत होता है

अपनी नौकरी से रिटायर होने के बाद ज्यादातर बूढ़े लोग अपने नाती-पोतों को पालने में व्यस्त हो जाते हैं। पर कुछ बुजुर्ग स्वयंसेवी बन जाते हैं और समाज की सेवा करने में अपना योगदान देते हैं।

बीजिंग : हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि बड़ों का आदर करो, बुजुर्गों का सम्मान करो। चीन में भी बिल्कुल यही सीख बचपन से दी जाती है। चीनी बच्चों की परवरिश हम भारतीयों से किसी भी तरह जुदा नहीं है। और हां, चीनी बुजुर्ग काफी सेहतमंद, चुस्त-दुरूस्त होते हैं।

अगर चीनी बुजुर्गों की जीवनशैली या आदतों की बात करें तो फैशन के मामले में वे किसी भी पश्चिमी देश के बुजुर्ग को पीछे छोड़ दें। चीनी लोग फैशन के मामले में पूरी तरह से अपडेट रहते हैं। हमने अक्सर अपनी दादी-नानी को यह कहते सुना है- अब मेरी ये सब पहनने-ओढ़ने की उम्र कहां रही। पर चीनी दादी-नानी इसके विपरीत खुद को एकदम चुस्त-दुरूस्त रखतीं और बनठन कर रहती हैं।

हालांकि भारत की तरह ही चीनी बुजुर्ग भी अपने नाती-पोतों को पालने में अहम भूमिका निभाते हैं, परंतु फैशन में किसी तरह की कोताही नहीं बरतते। कई बुजुर्ग महिलाएं छीपाओ (चीनी गाउन) भी पहनती हैं, जो आमतौर पर युवा महिलाएं और लड़कियों की पसंद है। इसके अलावा, चीनी बुजुर्ग अपने बालों पर बड़ा ध्यान देते हैं, समय-समय पर अपने बालों का स्टाइल बदलवाते हैं, कुछ तो अपने बालों को काले या भूरे भी रंगवाते हैं, उनका मानना है कि हमेशा जवान दिखना चाहिए।

अपनी नौकरी से रिटायर होने के बाद ज्यादातर बूढ़े लोग अपने नाती-पोतों को पालने में व्यस्त हो जाते हैं। पर कुछ बुजुर्ग स्वयंसेवी बन जाते हैं और समाज की सेवा करने में अपना योगदान देते हैं। जैसे कि लालबत्ती पर लोगों से सड़क नियमों का पालन करवाना, बस स्टॉप पर भीड़ को काबू करना, लोगों को सीधी लाइन में खड़े होने का निर्देश देना, साफ-सफाई करना आदि। चीन में बूढ़े लोग इन सभी कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, देश व समाज की सेवा करने में खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं।

चीनी बुजुर्गों की सबसे अच्छी बात यह लगती है कि वे अपने आपको व्यस्त रखते हैं। उनमें अनुशासित होने की अच्छी आदत है और बच्चों की तरह वे भी टाइम टेबल के अनुरूप चलते हैं। खैर, समय का पाबंद होना तो यहां बचपन से ही सिखाया जाता है। युवा लोगों की तरह बूढ़े लोग भी तय समय पर अपना काम करते हैं। भोजन करना, सोना-जागना, बाहर सैर पर जाना आदि सब काम तय समय पर करते हैं। बच्चों का लालन-पोषण करने के अलावा चीनी बुजुर्ग अपना जीवन अपने हिसाब से जीते हैं। खाली समय में अपना पसंदीदा काम करना उन्हें बहुत अच्छा लगता है।

सुबह-शाम पार्क में कई चीनी बुजुर्गों का समूह देखा जा सकता है जहां वे गाने का शौक रखने वाले माइक लेकर गाना गाते हैं, संगीत प्रेमी संगीत बजाकर जुगलबंदी करते हैं, तो कुछ सिर्फ बैठकर उस संगीत का आनंद लेते हैं। सुबह-शाम कसरत करना या एकसाथ मिलकर डांस करना, ये सभी खुद को व्यस्त रखने के साथ-साथ चीनी बुजुर्गों का स्वस्थ रहने का फॉमूर्ला भी है। चीनी बूढ़े लोग अपने खान-पान और सेहत का ध्यान बहुत अच्छे से रखते हैं। शायद तभी आज चीन में जीवन प्रत्याशा दर कहीं ज्यादा है। सर्दियों में जहां व्यायाम या दौड़ लगाते हुए नजर आएंगे, वहीं गर्मियों में संगीत पर थिरकते हुए दिखाई देते हैं।

चीन में महिला या पुरूष में असमानता नहीं रखी जाती है, शायद इसलिए यहां बुजुर्ग अपना जीवन आजादी और खुशी से बिता पाते हैं। वे किसी पर भी निर्भर नहीं रहते। वे अपने ज्यादातर काम खुद ही करते हैं। बाजार जाना, रोजमर्रा का सामान खरीदना, बैंक या अस्पताल के काम आदि सब कुछ अपने आप करते हैं। शायद इसलिए वे अन्य किसी भी देश के बुजुर्गों की तुलना में काफी फुतीर्ले होते हैं।

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