केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को कहा कि बैंकों के फंसे हुए विशाल कर्जो के लिए केंद्रीय बैंक जिम्मेदार है और जब बैंक साल 2008 से 2014 के दौरान अंधाधुंध कर्ज बांट रहे थे, तब आरबीआई इसकी अनदेखी कर रहा था, जिसके कारण अर्थव्यवस्था आज कराह रही है। जेटली का यह बयान आरबीआई और सरकार के बीच चल रही तनातनी की पुष्टि करता है। एक दिन पहले केंद्रीय बैंक के डिप्टी गर्वनर विरल आचार्य ने सरकार से कहा था कि बैंकिंग नियामक की कार्यप्रणाली की स्वायत्तता बरकरार रखी जानी चाहिए।
वित्तमंत्री ने कहा कि साल 2008 का वैश्विक संकट 2014 तक जारी रहा था, और इस दौरान बैकों से कहा गया कि वे अर्थव्यवस्था को ‘कृत्रिम रूप से’ बढ़ाने के लिए खुल कर कर्ज बांटें।
जेटली ने एक आयोजन में कहा, “जब अंधाधुंध कर्ज बांटे जा रहे थे, तब केंद्रीय बैंक उसकी अनदेखी कर रहा था.. साल 2008 में बैंकों ने कुल 18 लाख करोड़ रुपये के कर्ज बांटे थे, जो साल 2014 में बढ़कर 55 लाख करोड़ रुपये हो गया। और यह इतनी बड़ी रकम थी, जिसे संभालना बैंकों के बस से बाहर था। इसे संभालना कर्ज लेनेवालों (बड़ी कंपनियों) के बस के बाहर था और इसी कारण एनपीए (फंसे हुए कर्जे) की समस्या पैदा हुई है।”
उन्होंने कहा, “मुझे आश्चर्य है कि उस समय सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, बैंकों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उस समय केंद्रीय बैंक क्या कर रहा था। नियामक होने के बावजूद वह सच्चाई पर परदा डाल रहा था।”
उन्होंने कहा, “और हमें बताया गया कि कुल एनपीए 2.5 लाख करोड़ रुपये है। लेकिन जब हमने 2015 में समीक्षा की तो यह 8.5 लाख करोड़ रुपये निकला।”