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सूर्योपासना के पर्व पर गूंज रहे पारंपरिक और आधुनिक छठ गीत

छठ गीतों में अब आधुनिकता का भी समावेश दिख रहा है। नए कलाकार भी छठ मईया के गीत खूब गा रहे हैं।

पटना : लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर पूरा बिहार जहां भक्तिमय हो गया है वहीं राज्य की गलियों से लेकर सड़कों तक में मधुर और कर्णप्रिय छठ मईया के गीत गूंज रहे हैं। गौरतलब है कि छठ गीतों में जहां पारंपरिक गीतों की मांग अभी भी बनी हुई है वहीं नए कलाकारों द्वारा गाए गए गीतों से भी पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है।

लोक आस्था का महापर्व छठ बुधवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है। महापर्व छठ को लेकर बिहार में चहल-पहल दिखने लगी है। जिनके घरों में छठ हो रहा है, वे लोग शेष जरूरत के सामानों के खरीदने के लिए बाजार निकले हुए हैं। गुरुवार की शाम व्रती खरना करेंगे।

कहा भी जाता है कि गीत के बिना छठ पर्व अधूरा माना जाता है, और जब छठ गीतों की बात हो और शारदा सिन्हा की आवाज की बात नहीं हो, तो यह बात पूरी नहीं हो सकती। राजधानी की सड़क हो या मंदिर सभी ओर शारदा सिन्हा के ‘कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’ गूंज रहे हैं। प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी अनेक भोजपुरी गायकों के नए-नए छठ गीत ऑनलाइन माध्यमों पर उपलब्ध हैं।

‘केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेडराय’, चारों पहर राति, जल थल सेवली, चरण तोहर हे छठी मईया’, काच ही बास के बहंगिया बहंगी लचकत जाय’ जैसे पारंपरिक गीत आज भी लोगों को पसंद आ रहे हैं। लोक कलाकार शारदा सिन्हा के अलावा देवी, मालिनी अवस्थी, कल्पना, मनोज तिवारी और पवन सिंह के गीत भी लोग पसंद कर रहे हैं।

भोजपुरी की गायिका और लोकप्रिय अभिनेत्री अक्षरा सिंह के गाये ‘बनवले रहिह सुहाग’ को भी लोग पसंद कर रहे हैं। अक्षरा हर साल छठ पूजा पर नए गाने लेकर आती हैं, मगर यह गाना उन सबसे काफी अलग है। ‘बनवले रहिह सुहाग’ में छठ मईया की महिमा के साथ – साथ एक दिल छू लेने वाले इमोशन भी हैं।

छठ गीतों में अब आधुनिकता का भी समावेश दिख रहा है। नए कलाकार भी छठ मईया के गीत खूब गा रहे हैं। नए कलाकारों द्वारा गाये छठ गीतों की ऑनलाइन ऐप और यूटयूब चैनलों पर भी लोग सुन रहे हैं।

पटना की रहने वाली गायिका अक्षरा सिंह आईएएनएस से कहती हैं, “मेरी कोशिश रहती है कि सभी पवरें में कोई नया गाना लाउं। छठ जैसे महापर्व पर तो कई सालों से नया गाना ला रही हूं। इस पर्व के गीतों में भी इतनी आस्था है कि गीत बजते ही लोगों का सिर श्रद्घा से झुक जाता है। श्रद्घालु पुराने गायकों के साथ-साथ नए गायकों को भी सुनना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा कि जिन्हें भोजपुरी नहीं भी समझ में आती है, उनकी भी छठ की गीत के प्रति श्रद्घा होती है। उन्हें भी छठ के गीत कर्णप्रिय लगते हैं।

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