देश में कोरोना चेन तोड़ने को लागू लॉकडाउन ने कोरोना से पहले देश के अपराधियों को हलकान कर दिया है। लॉकडाउन के दौरान सड़क से पब्लिक गायब है। ऐसे में लूटें किसे और कैसे? ये वही अपराधी हैं, जो शिकार को सामने देखते ही बेरहम हो जाते थे। लॉकडाउन के दौरान पब्लिक से सूनी सड़कें बदमाशों की पहली मुसीबत बन गई हैं। दूसरी मुसीबत साबित हो रही है चप्पे-चप्पे पर मौजूद पुलिस और बैरिकेट्स।
दिल्ली पुलिस के 15 मार्च, 2019 से 31 मार्च, 2010 तक और 15 मार्च, 2020 से 31 मार्च, 2020 तक के आंकड़ों की तुलना की जाए तो हाल के 15 दिनों में अपराधों में गिरावट दिखाई देती है। इन आंकड़ों में लॉकडाउन की अवधि यानी नौ दिनों (22 मार्च से 31 मार्च, 2020) के आंकड़े भी शामिल हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, “सन् 2019 में पंद्रह दिनों में (15 मार्च से 31 मार्च 2019 तक) 3416 एफआईआर दर्ज की गई थी। जबकि 15 मार्च से 31 मार्च, 2020 के बीच यह संख्या घटकर 1993 रह गई। ये मामले लूट, अपहरण, जेबतराशी, झपटमारी, मारपीट-झगड़ा, सेंधमारी, वाहन चोरी, घरों में चोरी, महिलाओं से छेड़छाड़, सड़क हादसे आदि के हैं।”
आंकड़े के अनुसार, इस अवधि में बीते साल दिल्ली में लूट के 109 दर्ज किए गए। जबकि मार्च 2020 के अंतिम 15 दिनों में यह संख्या घटकर 53 पर आ गई। इसमें नौ दिन लॉकडाउन वाले भी शामिल हैं। मतलब लूट की वारदातों में बेतहाशा कमी आई। कमी आना स्वभाविक भी है। जब सड़क से पब्लिक और बदमाश गायब हैं तो फिर भला अपराध क्यों और कैसे होंगे?
बीते साल इस दौरान अपहरण का एक मामला दर्ज हुआ था। जबकि इस साल इन पंद्रह दिनों में अपहरण का एक भी केस रिकार्ड नहीं किया गया। इसी तरह बीते साल इन 15 दिनों में जेबतराशी के 13 मामले दर्ज हुए थे, जबकि इस साल सिर्फ तीन ही केस दर्ज हुए। वह भी लॉकडाउन अवधि से पहले के बताए जाते हैं।
लॉकडाउन के दौरान चूंकि राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों से वाहन गायब रहे ऐसे में साधारण सड़क हादसों की संख्या में भी करीब 50 फीसदी की कमी देखने को मिली। सन् 2019 में इस श्रेणी में 219 मामले दर्ज किए गए थे। 2020 के इन पंद्रह दिनों में यह संख्या 112 ही है। इन 112 में भी अधिकांश हादसे लॉकडाउन अवधि शुरू होने से पहले के हैं। जब सड़क पर महिलाएं उतरी ही नहीं तो फिर छेड़छाड़ के मामले भी कम दर्ज किए गए। पिछले साल इस मद में 144 केस दर्ज हुए थे। 15 मार्च से 31 मार्च 2020 के बीच यह संख्या घटकर 72 पर आ पहुंची। यानी तकरीबन पचास फीसदी की कमी।
यानी जब तक कोरोना के कहर से निपटने को दिल्ली में धारा-144 और लॉकडाउन लागू नहीं हुआ, तब तक बदमाश राजधानी की सड़कों पर लूट-खसोट करके खा-कमा रहे थे। जैसे ही शिकार घर में खुद को बंद कर लिए, सड़कें पुलिस और बैरिकेट्स से भर दी गई, वैसे ही अपराधी बेरोजगार हो गए।
इस बारे में दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता एसीपी अनिल मित्तल ने भी शुक्रवार को आईएएनएस से बातचीत में इस बात को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “अपराध ग्राफ बहुत डाउन हुआ है। जब सड़कों पर आदमी ही मौजूद नहीं हैं। और शहर में लॉकडाउन है तो ऐसे में अपराधी भी भला किसे शिकार बनाएं। हालांकि ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन से पहले हो रही आपराधिक वारदातों में शामिल बदमाश खुलेआम घूमते रहे हैं। उन्हें पकड़ कर सजा दिलाई जाती रही है।”